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Blog Type:: Poem
Thursday, July 24, 2008 | [fix unicode]
 

साना कुरामा अल्झिन थाले जीन्दगी होला व्यर्थ,
विख्यात कर्महीन कर्मले,ल्याइदेला निष्काम अर्थ ।
म माथि सोचमा उक्लिन चाहन्छु, गृहको व्यर्थ झगडा हैन ,
म प्रकृतीको अर्थ खोज्न चाहन्छु, दिन काट्ने अखडा हैन।

आँखा खोली हेर्दा स्त्रीको जुनि देख्छु, बन्द आँखाले गन्तव्य अर्कै,
विश्वासका दृष्टिले संकल्प भेट्छु, मनुष्य जुनिले केवल तर्कै ।
म मानिष बनि जुनिमा लटपटिने छैन, यस्तो लाग्छ मनमा सदा,
शरीरको वशमा यद्यपि,मनुष्यको भावमा डुब्छु यदा कदा ।

मेरो गन्तव्य टाढा छ, जहाँ दृष्टि पुग्दैन नर जातका ,
मेरो संकल्प दुर कतै, जहाँ असक्षमता हातका ।
म लोक यस्तो चाहन्छु, वरपर शन्तिको उत्कर्ष रहेको,
हर्ष हैन, अश्रु हैन, खोज खोजमा ज्ञान बहेको।

गन्तव्य यस्तो,चीर मन्त्र शब्दको झन्कार जस्तो,
मनुष्यको रगंमा डुबेर, म आत्मा चाहन्छु परमात्मा जस्तो ।।

   [ posted by DhungelRicha @ 07:50 AM ] | Viewed: 2691 times [ Feedback] (1 Comment)


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