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Blog Type:: Poem
Thursday, January 15, 2009 | [fix unicode]
 

भोक, भोग र सम्भोग
शिव प्रकाश

भोक नियम हो
भोग नियत हो
सम्भोग निदान हो
र, सम्भोग वरदान पनि हो ।

भोका छन् सबै प्राणी
तर मान्छे –
सबैभ‌दा भोको छ
त्यसैले मान्छे –
मासु पनि खा‌न्छ

आँशु पनि खा‌न्छ
मन पनि खा‌न्छ
माटो पनि खा‌न्छ
र, मा‌न्छे –
मा‌न्छे पनि खा‌न्छ
त्यसैले मा‌न्छे –
माछो पनि हो
बाच्छो पनि हो
र, मान्छे माकुरो पनि हो ।

भोगको भोको मा‌न्छे
भोग्नका लागि ईश्वर पनि भाक्छ
सबैभ‌दा बढी भोक मा‌न्छेलाई नै लाग्छ
सबैभ‌दा बढी भोग मा‌न्छेले नै गर्छ
सबैभ‌दा बढी सम्भोग मान्छेले नै गर्छ ।

निश्चित याम र मौसम हु‌न्छ
हरेक प्राणीको भोक, भोग र सम्भोगको
तर मा‌न्छे –
हरेक समय भोको छ
हरेक समय भोगी छ
हरेक समय सम्भोगी छ
ईश्वरको वरदानको सधैं लोभी छ ।

अनिश्चित विचार
अस्वाभाविक व्यवहार
सृष्टिको अनुपम् उपहार मा‌न्छे –
भोक, भोग र स्भोगका लागि सधैं भोको छ
ईश्वरको त्यो वरदानको उसलाई सधैं धोको छ ।

जनवरी १५, २००८ बोस्टन, अमेरिका ।

   [ posted by sprakashp @ 05:57 PM ] | Viewed: 3294 times [ Feedback] (1 Comment)


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